Protests erupt outside Kasba Police station as 3 arrested in alleged Kolkata college gang rape
सरकारी डॉक्टरों की संस्था "एसोसिएशन ऑफ हेल्थ सर्विस डॉक्टर्स" के महासचिव उत्पल बनर्जी ने आरोप लगाया कि यह सरकार का प्रतिशोधी कदम है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टरों के कामकाज को लेकर नए सख्त नियम जारी किए हैं। सोमवार देर शाम को जारी एक आदेश के अनुसार, सरकारी डॉक्टरों को प्रतिदिन आठ घंटे अस्पताल में काम करना होगा और सुबह नौ बजे से शाम चार बजे के बीच किसी भी प्रकार की निजी प्रैक्टिस की अनुमति नहीं होगी।
नए नियम के अनुसार, अब निजी प्रैक्टिस करने के लिए डॉक्टरों को केवल "नॉन-प्रैक्टिसिंग अलाउंस" छोड़ना ही पर्याप्त नहीं होगा। इसके लिए स्वास्थ्य निदेशक या स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक से "नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट" (एनओसी) भी लेना अनिवार्य होगा। इसके साथ ही, डॉक्टरों को अपने कार्यक्षेत्र से 20 किलोमीटर की सीमा के बाहर निजी प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं होगी।
पिछले सप्ताह स्वास्थ्य विभाग ने निर्देश दिया था कि डॉक्टरों को सप्ताह में न्यूनतम छह दिन और 42 घंटे काम करना होगा। रात की ड्यूटी करने वाले डॉक्टरों को अगले दिन अवकाश नहीं मिलेगा। साथ ही, किसी भी विभाग में एक समय पर दो से अधिक डॉक्टर अवकाश पर नहीं जा सकते।
सरकारी डॉक्टरों के एक बड़े वर्ग ने इन नए नियमों का विरोध किया है। सरकारी डॉक्टरों की संस्था "एसोसिएशन ऑफ हेल्थ सर्विस डॉक्टर्स" के महासचिव उत्पल बनर्जी ने आरोप लगाया कि यह सरकार का प्रतिशोधी कदम है। उन्होंने कहा कि सरकार उन डॉक्टरों को निशाना बना रही है जो आंदोलन का हिस्सा रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कई सरकारी डॉक्टर अस्पताल की सेवाओं को नजरअंदाज कर निजी प्रैक्टिस पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इससे मरीजों को परेशानी हो रही है। इसी कारण यह सख्ती लागू की गईप्रभात
इन सख्त नियमों का सबसे बड़ा प्रभाव उन डॉक्टरों पर होगा जो कोलकाता से दूर स्थित अस्पतालों में कार्यरत हैं और निजी प्रैक्टिस करते हैं। नए निर्देशों के चलते उनके लिए निजी प्रैक्टिस करना लगभग असंभव हो जाएगा। स्वास्थ्य विभाग के इन कदमों का उद्देश्य सरकारी अस्पतालों की सेवाओं में सुधार करना है, लेकिन डॉक्टरों के विरोध के चलते यह मामला और तूल पकड़ सकता है।